पत्रकारों की सुरक्षा और एकता पर मंडराता खतरा: समय की मांग और जिम्मेदारी

पत्रकारों की सुरक्षा और एकता पर मंडराता खतरा: समय की मांग और जिम्मेदारी

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, जो समाज में सत्य, न्याय और निष्पक्षता की आवाज़ उठाने का काम करता है। लेकिन वर्तमान समय में, पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्याओं ने इस पेशे को एक खतरनाक राह पर खड़ा कर दिया है। यह स्थिति न केवल पत्रकारिता के लिए, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी एक गंभीर चुनौती है।

भारत में पत्रकारों पर बढ़ते हमले:

भारत में पत्रकारों पर हमले और उनकी हत्याओं के मामले तेजी से बढ़े हैं। 2010 से अब तक सैकड़ों पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2024 के बीच लगभग 150 पत्रकारों की हत्या की गई। इनमें से कई मामले अब भी न्याय की प्रतीक्षा में हैं।

कुछ प्रमुख घटनाएं:

1. गौरी लंकेश हत्याकांड (2017): बेंगलुरु की वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

2. शुजात बुखारी (2018): कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार और "राइजिंग कश्मीर" के संपादक शुजात बुखारी को उनके दफ्तर के बाहर गोली मार दी गई।

3. रामचंद्र छत्रपति (2002): सिरसा स्थित पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या एक ऐसे मामले को उजागर करने के बाद हुई, जिसमें धार्मिक गुरु का नाम जुड़ा था।

5. मुकेश चंद्राकर (2025): छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु ने भी पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कई बार माओवादी गतिविधियों और सरकारी नीतियों की खामियों को उजागर किया था। उनकी मृत्यु की पूरी सच्चाई अब भी अनसुलझी है। यह घटना पत्रकारों की सुरक्षा की विफलता को उजागर करती है।

कारण:

1. सत्य का पर्दाफाश: भ्रष्टाचार, संगठित अपराध, और राजनीतिक षड्यंत्र उजागर करने वाले पत्रकार अक्सर खतरे में रहते हैं।

2. सुरक्षा की कमी: पत्रकारों को न तो पर्याप्त कानूनी सुरक्षा मिलती है, न ही सरकार द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होते हैं।

3. कानूनी कार्रवाई की कमी: दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई न होने के कारण अपराधियों का हौसला बढ़ता है।

जरूरत:

1. सख्त कानून: पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठोर कानून बनाए जाएं।

2. सुरक्षा कवच: हाई-प्रोफाइल और संवेदनशील मुद्दों पर काम करने वाले पत्रकारों को सुरक्षा दी जाए।

3. एकता और संगठन: पत्रकारों को अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए संगठित होकर काम करना होगा।

पत्रकारिता एक जोखिम भरा पेशा बनता जा रहा है, लेकिन यह समाज और लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी है। पत्रकारों की सुरक्षा केवल उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सरकार, समाज और स्वयं पत्रकारिता जगत की भी है।


आइए, एक ऐसा माहौल बनाएं जहां पत्रकार बिना किसी डर के सच को उजागर कर सकें।

 

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