नयी कविता के सहारे लगातार गिरते जीवन मूल्यों की पड़ताल करती पुस्तक - नयी कविता - दर्शन और मूल्य



नयी कविता के सहारे  लगातार गिरते जीवन  मूल्यों की पड़ताल करती पुस्तक ..... 
 
लेखक - विनय कुमार तिवारी

 " नई कविता : दर्शन और मूल्य" जिसकी लेखिका डॉo भवानी कुमारी हैं l  इस पुस्तक को परिमल प्रकाशक ( प्रयागराज ) द्वारा प्रकाशित किया गया है ।  लेखिका ने नयी कविता के प्रमुख कवियों की रचनाओं के माध्यम से दर्शन एवं मानवीय मूल्यों के विविध पक्षों का बोध कराया है। इन्होने समाज में बदलते जीवन मूल्यों जैसे- सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, पारिवारिक, शैक्षिक तथा सांस्कृतिक, जीवन मूल्यों के गिरते स्तर और उसमे परिवर्तन को उजागर किया है तथा मानव जीवन के कर्म सिद्धांत की महत्ता पर भी बल दिया है, ताकि मानव जीवन उन्नति के चरम शिखरों को प्राप्त कर सके। मानव दुःख को नये कविता के कवियों ने अनुभूति का विषय बनाया है, और दुःख को ही दुःख निवारण का साधन भी स्वीकार किया है। नये कविता के प्रमुख कवि.... अज्ञेय जी ने बड़ी आस्था से इस पीड़ा को अपनाते हुए कहते हैं - "दुख सबको मांजता है और चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, लेकिन जिन्हें यह मांजता है, उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें"
   लघु मानव की कल्पना ने नयी कविता को एक दार्शनिक आयाम दिया हैं। लघु मानव को उसकी समस्त हीनता और महत्ता के सन्दर्भ में प्रस्तुत करके कवियों ने उसके प्रति सहानुभूति पूर्ण दृष्टि से सोचने के लिए एक नया रास्ता खोला हैं।
वे कहते हैं -----

पुस्तक लेखिका- डॉ भवानी कुमारी

“समस्या एक मेरे सभ्य नगरों और ग्रामों में, सभी मानव सुखी सुन्दर और शोषणमुक्त कब होंगे।"
प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका ने नयी कविता में प्राप्त होने वाली दार्शनिक शब्दावली और विचार को बहुविध आयामों में उद्घघाटित करने का एक सफल प्रयास किया है। अभी तक प्राप्त भारतीय एवं पाश्चात्य दार्शनिक शब्दों और विचारों का अनुसंधान करते हुए विभिन्न नये कवियों की कविताओं को लक्षित करना लेखिका का अभिप्राय रहा हैं। नयी कविता में उपलब्ध दार्शनिक शब्दावली के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नयी कविता की भाषिक संवेदना दर्शन से ही अनुप्रेरित हैं।

" जैसे बिना समाज के किसी साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती वैसे ही दर्शन रहित साहित्य का अस्तित्व भी अकल्पनीय हैं"
 दर्शन का काम सिर्फ संसार की व्याख्या करना ही नहीं बल्कि उसे बदलना भी हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि आम आदमी से जुड़े बिना दर्शन यह काम नहीं कर सकता हैं । अतः साहित्य में तथा समाज में भी दर्शन की सार्थकता तभी हैं , जब उसका लाभ समान्य लोगों तक पहुंचे। पुस्तक माध्यम से लेखिका का अभिप्राय यही रहा है की हमारा समाज सभ्य, परिस्कृत एवं स्वच्छ बन सके जिसके लिये हमें मानवीय मूल्य को अपनाना होगा एवं मन में----
“सर्व भवन्तु सुखिनः" एवं बहुजन हिताय की भावना रखनी होगी । ===========    ======

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