स्मार्ट सिटी का एफडीआर कांड: 77 लाख के गड़बड़झाले ने खोली भ्रष्टाचार की पोल, सवाल जीरो टॉलरेंस का

स्मार्ट सिटी का एफडीआर कांड: 77 लाख के गड़बड़झाले ने खोली भ्रष्टाचार की पोल, सवाल जीरो टॉलरेंस का

(बिलासपुर छत्तीसगढ़। दुलाल मुखर्जी) स्मार्ट सिटी लिमिटेड के 77 लाख के एफडीआर घोटाले ने एक बार फिर प्रशासनिक अफसरों और ठेकेदारों के बीच चल रही सांठगांठ को उजागर कर दिया है। यह मामला भ्रष्टाचार और लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण बनकर सामने आया है। नाला निर्माण के इस प्रकरण में ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत ने न केवल एफडीआर प्रक्रिया को सवालों के घेरे में ला दिया है, बल्कि शहर के विकास कार्यों पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

क्या है पूरा मामला?

मामला वर्ष 2021 का है, जब महाराणा प्रताप चौक के पास नाला निर्माण कार्य के लिए टेंडर प्रक्रिया के बाद एक ठेकेदार को कार्य सौंपा गया। इसके लिए 77 लाख रुपये की एफडीआर जमा करने पर वर्क ऑर्डर जारी किया गया। आरोप है कि ठेकेदार ने काम अधूरा छोड़कर अधिकारियों और स्टाफ के साथ मिलीभगत करके एफडीआर को निकाल लिया और उसके स्थान पर केवल रंगीन फोटोकॉपी जमा कर दी।

एफडीआर, जो कि काम पूरा होने तक जमा रहनी चाहिए थी, उसे कथित रूप से फर्जी तरीके से बैंक से आहरित कर लिया गया। यह मामला सीधे-सीधे एफडीआर चोरी और धोखाधड़ी का प्रतीत होता है। प्रशासन ने इस मामले को महज 16 लाख रुपये के जुर्माने के साथ रफा-दफा करने का प्रयास किया।

जब मामला उजागर हुआ तो ठेकेदार को बचाने के लिए अधिकारियों ने तर्क दिया कि एफडीआर चोरी नहीं हुई थी, बल्कि उसकी वैधता समाप्त हो गई थी और इसके बदले ठेकेदार ने नई एफडीआर जमा कराई। सवाल यह उठता है कि अगर ऐसा था, तो ठेकेदार पर जुर्माना और बैंक व आरबीआई को चिट्ठी क्यों भेजी गई?

कांग्रेस नेता का दखल और विवाद

भाजपा के शासनकाल में भी कांग्रेस से जुड़े एक छात्र नेता की 'मांडवाली' की चर्चा ने मामले को और जटिल बना दिया। बताया जाता है कि ठेकेदार को बचाने के प्रयास में अफसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन जब भाजपा से जुड़े दो छात्र नेता और एक विधायक इस मामले में शामिल हुए, तो स्थिति और बिगड़ गई।

कथित तौर पर, विधायक ने अधिकारियों से चर्चित ठेकेदार को 10 करोड़ रुपये का बड़ा ठेका देने और एफडीआर कांड को सुलझाने की कोशिश की, जिससे विवाद और बढ़ गया।

मंत्री और जांच का वादा, लेकिन नतीजा शून्य

स्मार्ट सिटी के कार्यों में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के आरोपों पर उप मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव और केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने जांच का आश्वासन दिया। हालांकि, अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

सवाल उठाते हैं बिलासपुरवासी

स्मार्ट सिटी लिमिटेड के भ्रष्टाचार को लेकर बिलासपुर के लोग एक ही बात कहते हैं कि स्मार्ट सिटी के दफ्तर को छोड़कर कुछ भी स्मार्ट नहीं है। जर्जर सड़कें, गड्ढे, और अनियमित विकास कार्यों के बीच सौंदर्यीकरण के नाम पर केवल पैसे की बर्बादी हो रही है।

क्या होगा आगे?

घोटाले से जुड़े कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। एफडीआर की वैधता समाप्त होने का दावा कितना सही है? ठेकेदार पर मात्र जुर्माना क्यों लगाया गया? और अगर जीरो टॉलरेंस की नीति है, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन और सरकार इस मामले पर क्या रुख अपनाती है।

अमित कुमार, एमडी स्मार्ट सिटी लिमिटेड बिलासपुर

स्मार्ट सिटी का 77 लाख का एफडीआर कांड शहर के विकास कार्यों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। प्रशासन और सरकार की निष्क्रियता ने जनता के विश्वास को चोट पहुंचाई है। अब देखना यह है कि क्या सच में जीरो टॉलरेंस का दावा हकीकत में बदलेगा या यह भी महज एक वादा बनकर रह जाएगा। 

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