बिलासपुर जिला में पदस्थ आरक्षक अरुण कमलवंशी ने विभाग को गुमराह कर लिया प्रमोशन का लाभ : बिलासपुर पुलिस सवालों के घेरे में
बिलासपुर 20.11.2024
जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के एसपी ऑफिस में रीडर के रूप में पदस्थ पुलिस आरक्षक क्रमांक 840, अरुण कुमार कमलवंशी के विरुद्ध गंभीर आरोपों और लंबित न्यायिक प्रक्रिया के बावजूद उन्हें 12 नवंबर 2024 को प्रमोशन दिया गया। यह निर्णय कई कानूनी और प्रशासनिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है: पुलिस अधीक्षक कार्यालय बिलासपुर से जारी प्रमोशन आदेश क्रमांक कमांक - पुअ/बिला/स्था./1284/ 2024, बिलासपुर दिनांक 12.11.2024 के सिरियल नंबर 56 में आरक्षक अरुण कमल वंशी का आरक्षक से प्रधान आरक्षक के पद पर पदोन्नति आदेश दर्ज है, एवं इस आदेश कॉपी में एक नोटिस लिखा है जिस पर उल्लेख है कि
"उक्त आरक्षकों के विरूद्ध कोई गंभीर जांच, विभागीय जांच, अपराधिक प्रकरण आदि कार्यवाही लंबित हो अथवा इन्हे कोई बड़ी सजा मिली हो तो, ऐसे आरक्षकों की पदोन्नति निरस्त माना जावें" चूंकि आरक्षक अरुण कमलवंशी के विरुद्ध वर्ष 2023 से हाईकोर्ट में गंभीर विषय पर, विभागीय जांच कर सेवा से बर्खास्त से संबंधित मामला लंबित है, जिसका प्रकरण क्रमांक WPS/8915/2023 है, एवं उसी याचिका में उक्त आरक्षक के प्रमोशन को मामला हाईकोर्ट में लंबित रहने तक स्थगित किए जाने हेतु भी एक अंतरिम आवेदन लंबित है जिसकी जानकारी आरक्षक अरुण कमल वंशी द्वारा विभाग से छुपाते हुए विभागीय प्रमोशन का लाभ लिया गया है, जो की एक अपराधिक कृत्य है एवं गंभीर जांच का विषय है। इसके अलावा कुटुंब न्यायालय जिला बिलासपुर द्वारा भी आरक्षक अरुण कमलवंशी को शादीशुदा होते हुए भी किसी अन्य महिला के साथ जारता में होना पाया गया है, जिसका जजमेंट ऑर्डर 30 अप्रैल 2024 को जारी हुआ है, एवं वर्ष 2022 में महिला थाना जिला बिलासपुर के आदेश क्रमांक, शिकायत क्रमांक- सदरी/09/2022 दिनांक 01/12/2022 है, जिसके जांच निष्कर्ष में स्पष्ट उल्लेख है,
"जाँच पर अनावेदक आर. 840 अरुणकुमार कमलवंशी द्वारा अपनी व्याहता पत्नि से विवाह विच्छेद किए बिना किसी अन्य महिला आवेदक की पत्नि को साथ रखना पाया गया।"
महिला विरुद्ध अपराध विवेचना शाखा (IUCAW) एवं थाना सकरी के जांच निष्कर्ष में भी आरक्षक अरुण कमल मुंशी को शादीशुदा होते हुए भी अपनी पूर्व पत्नी को बिना तलाक लिए दूसरी महिला अनावेदक की पत्नी को दूसरी पत्नी के रूप में रखना पाया गया है। जो कि सिविल सेवा आचरण नियम 1964 एवं पुलिस अधिनियम 1861 का स्पष्ट उल्लंघन करती है इसके साथ ही आईपीसी की धारा 494 एवं 495 के तहत गंभीर अपराध कृषि में आता है ऐसे शासकीय सेवकों को सेवा से बर्खास्त किए जाने का प्रावधान है उसके बावजूद भी ऐसे अपराधी आरक्षक को सजा देने के बजाय प्रमोशन दिया जाना बिलासपुर पुलिस की सांठ गांठ प्रतीत होता है।
क्या कहती है ऐसे मामलों पर विभागीय नियम एवं कानून :-
1. सिविल सेवा आचरण नियम, 1964
इन नियमों का उद्देश्य सरकारी सेवकों के लिए नैतिक और अनुशासनात्मक आचरण सुनिश्चित करना है। नियम 3(1) के तहत हर सरकारी सेवक का आचरण उच्च नैतिकता, ईमानदारी और अनुशासन का होना चाहिए। द्विविवाह जैसे गंभीर अपराध, नैतिक आचरण के विरुद्ध हैं और इसे नियमों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है।
2. पुलिस अधिनियम, 1861
इस अधिनियम के तहत, पुलिस बल के सदस्यों पर उच्च नैतिक मानकों का पालन करने की अपेक्षा होती है। अपराध सिद्ध होने और अनैतिक आचरण के मामले में सेवा से बर्खास्तगी का स्पष्ट प्रावधान है।
3. भारतीय दंड संहिता (IPC)
धारा 494: यह धारा द्विविवाह को अपराध मानती है, यदि किसी व्यक्ति ने पहली पत्नी/पति के जीवित रहते हुए दूसरी शादी की हो।
धारा 495: यदि द्विविवाह के तथ्य को छुपाकर शादी की जाती है, तो यह और भी गंभीर अपराध है।
मामले की स्थिति
महिला थाना और कुटुंब न्यायालय के निष्कर्षों के अनुसार, अरुण कुमार कमलवंशी पर द्विविवाह और जारता के आरोप साबित हो चुके हैं। बावजूद इसके, उच्च न्यायालय में मामला लंबित होने के बीच उन्हें प्रमोशन दिया गया, जो प्रशासनिक प्रावधानों के साथ न्यायिक प्रक्रिया का भी उल्लंघन है।
न्यायिक दृष्टांत
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा है कि अनैतिक आचरण और गंभीर अपराधों में फंसे सरकारी सेवकों को बर्खास्त करना ही उचित है। इस मामले में कार्रवाई न करना नियमों और न्याय दोनों के विपरीत है।
ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के प्रमोशन आदेश की तत्काल समीक्षा कर लंबित न्यायिक और विभागीय जांच पूरी होने तक संबंधित आरक्षक को निलंबित किया जाना चाहिए एवं पुलिस अधिनियम, सिविल सेवा आचरण नियम और भारतीय दंड संहिता के अनुसार कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
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