झरिया एस्टेट ब्रिटिश भारत में एक जमींदारी संपत्ति थी, जो बंगाल प्रेसीडेंसी के बिहार प्रांत के झरिया में स्थित थी।

झरिया का इतिहास
झरिया एस्टेट ब्रिटिश भारत में एक जमींदारी संपत्ति थी, जो बंगाल प्रेसीडेंसी के बिहार प्रांत के झरिया में स्थित थी।
वर्तमान झरिया गढ़ हजारीबाग के पालगंज की एक शाखा है और पहले कतरासगढ़ में स्थापित किया गया था। आज भी झरिया राज परिवार का पृथक घर सह कीला कतरास में स्थित है। पारिवारिक इतिहास के अनुसार जमींदार मूल रूप से मध्य भारत के रीवा के थे और उन्होंने वर्ष 1763 में झरिया के आसपास के क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था। 1864 में जयनगर एस्टेट को झरिया एस्टेट ने खरीद लिया था। कतरास गांव में जमीदार का निवास है, जो परंपरा के अनुसार कतरास, झरिया और नवागढ़ के अलग-अलग घरों में विभाजित होने से पहले झरिया राज का मुख्यालय था। नीचे की भूमि में कोयले की खोज होने और क्षेत्र में 1890 के दशक में खनन शुरू होने के बाद यह बंगाल प्रेसीडेंसी के सबसे अमीर जमींदारी संपदाओं में से एक बन गई।
झरिया राज के उल्लेखनीय जमीदारों में राजा दुर्गा प्रसाद सिंह थे जिन्हें 1850 के दशक में संपत्ति विरासत में मिली थी। जब वह नाबालिक थे। 1916 में दुर्गा की मृत्यु हो गई, जिनका उत्तराधिकारी राजा शिव प्रसाद सिंह बने। जनवरी 1947 में शिव प्रसाद की मृत्यु हो गई और उनके सबसे बड़े बेटे श्री काली प्रसाद सिंह 1952 में जमींदारी समाप्त होने तक झरिया के अंतिम राजा बने।
प्रमुख कोयला खनन क्षेत्र पांच बड़ी संपदाओं में थे- झरिया राज, नवागढ़ राज, कतरासगढ़ राज टुंडी राज और पांड्रा राज, जो तत्कालीन मनभूम जिले में दामोदर और बराकर नदियों के बीच के पूरे क्षेत्र को कवर करते थे, जो बाद में धनबाद जिला बन गया।
झरिया राज मानभूम जिले का हिस्सा था जिसका मुख्यालय बंगसोरना था जिसे बाद में गोविंदपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। 1904 में बंगाल के उप राज्यपाल सर एंड्रयू फ्रेजर द्वारा यह निर्णय लिया गया कि उपखंड का मुख्यालय गोविंदपुर से धनबाद स्थानांतरण किया जाना चाहिए। हालांकि वास्तविक स्थानांतरण 27 जून 1908 में हुआ था। धनबाद में मुख्यालय के स्थानांतरण के साथ विभिन्न सुविधाएं प्रदान की गई, जिसने लोगों को राज में रहने के लिए आकर्षित किया।
झरिया राज परिवार के इतिहास में लिखा हुआ है जैसे की विकिपीडिया और अन्य सभी सोत्रों से ज्ञात होता है कि यह लोग मूल रूप से मध्य प्रदेश के रीवा के राजपूत थे।
झरिया कतरासगढ़ के राज परिवार के सभी सदस्य जो आज भी मौजूद है वह सभी लोग केवल मात्र बांग्ला भाषा में ही बात करते हैं।
धनबाद शहर का तो कोई अस्तित्व ही नहीं था झरिया एक प्राचीन शहर है और मानभूम की प्राचीन संस्कृति से जुड़ा हुआ है।

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